किस तरह देखूँ मंज़र हसीं शाम का
चैन तो दिल में रह गया बस नाम का
हाय वह ज़माना शोहरतो-नाम का
वक़्त कहाँ थम गया एहतराम का
चटख रंगे-शफ़क़ आँखों में चुभती है
हाल तो देखिए दिले-नाकाम का
दिल पे तेरे उन्स ने लम्स दिया जो
अब ख़ाक ग़म हो किसी ईनाम का
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’