वज़नी साँसों में दम पिस रहा है
दिल से लब खू़न रिस रहा है
वह कौन था जिसने दीवाना किया
कलेजा लब तक खिंच रहा है
दुःख रहा है मेरा सीना तन्हाई में
सब कुछ बंजर दिख रहा है
तुम न जानो मेरा हाले-हिज्र
दर्द अफ़साना नया लिख रहा है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’