यादें खु़शबू बनकर मेरी साँसों में बसती हैं
बेक़रार निगाहें तेरे दीदार को तरसती हैं
अबके बरसे न सावन में सहाब झिरझिर
न जाने किसलिए यह अँखियाँ बरसती हैं
उड़ते हैं नीले आकाश में कुछ सफ़ेद बगूले
छूटना चाहता हूँ तो रूह की गिरहें और कसती हैं
रोते हैं अगर ग़मे-हिज्राँ में तेरे जानाँ तो
जिया जलाने को तेरी तस्वीरें और हँसती हैं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’