जब यार था गुलज़ार था
बाद उसके मैं ज़ार-ज़ार था
साथ तेरे सुकूँ था कुछ
बिगै़र तेरे दिल आज़ार था
तुमसे थी चराग़ों में ज़ौ
मैं हर तरह ख़ाकसार था
तूने न कभी महसूस किया
मुझे तुमसे प्यार था
रुत जब भी बदली
मुझको तेरा इंतज़ार था
जिसने मिट्टी को सोना किया
उस मन में तेरा खु़मार था
वह दिन भी कम रहे
जब रोज़ होता तेरा दीदार था
किन ख़्यालों में हो ऐ ‘नज़र’
मन में कोई गु़बार था
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’