यह गली यह रहगुज़र यह मकान तुम्हें याद हो कि न याद हो
जिसकी चौखट से लौट गये वह मेज़बान तुम्हें याद हो कि न याद हो
वह डूबती हुईं सब गहरी-गहरी शामें वह सितारों की झिलमिल
वह तेरा मुक़ाबिल वह पर्दानशीं चाँद तुम्हें याद हो की न याद हो
वह आना जाना रोज़ का वह निगाह का उठके सिमटना मेरे आगे
वह मेरी खा़मोश आँखों का तर्ज़े-बयान तुम्हें याद हो कि न याद हो
कोई जो देखे तुम्हें तो मेरे रश्क़ वह देखना तुम्हें मेरा एक टुक
वह पहले प्यार की अधूरी दास्तान तुम्हें याद हो कि न याद हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’