मन ही रोती रहीं कोरी अँखियाँ
रुत सावन की बीती न बरसी अँखियाँ
खा़मोशी में बयाँ करती हैं सब कुछ
तेरे-मेरे दिल-सी कजरारी अँखियाँ
रहगुज़र में नज़रें बिछाये हुए
तुझको सदाओं में पुकारती अँखियाँ
मेरी निगाह जैसे जनमों से प्यासी
इक मीठा सागर तुम्हारी अँखियाँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’