इंसाफ़ यह हमसे इल्तिफ़ात यह
क्यों चाक जिगर पे नमक डालते हो
परीवश हो आइना-रू हो जानते हैं
क्यों अंधी आँखों पर चमक डालते हो
वैसे ही बहुत ख़लल हैं दिमाग़ में
क्यों ज़हनी नसों में दरक डालते हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
इंसाफ़ यह हमसे इल्तिफ़ात यह
क्यों चाक जिगर पे नमक डालते हो
परीवश हो आइना-रू हो जानते हैं
क्यों अंधी आँखों पर चमक डालते हो
वैसे ही बहुत ख़लल हैं दिमाग़ में
क्यों ज़हनी नसों में दरक डालते हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४