दिल क्या लगाया परीज़ाद से
बैठे हाथ धो जश्नो-शाद से
सीखा है इश्क़ फ़रहाद से
क़त्ल हुए निगाहे-दाद से
शम्ए-मुहब्बत जलती है
दो दिलों की सच्ची फ़रियाद से
कर क्या न गुज़रे इश्क़ में
परवाने सितम-ईज़ाद से
शीशाए-दिल चूर-चूर हो गया
लहू गलता रहा मवाद से
पयाम ये सनम को पहुँचा दो
फिरते हैं हम बरबाद से
एक कर्ज़ थी नसीहत उसकी
कौड़ी-कौड़ी चुकायी मियाद से
ज़हन को जलाती है आतिश
ज़िबस जल गये इरशाद से
एक तूफ़ान उठा है दिल में
हम बह गये बे-बुनियाद से
ये गत उसके प्यार ने की
जाना ये मगर बहुत बाद से
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४