गर हम निकाले जायें सनमख़ाने से
फिर क्या फ़ायदा का’बे में सर झुकाने से
लगी हमें यार की महफ़िल बुतक़दे-सी
दिल क्यों पिघल जाते मेरे शे’र सुनाने से
नज़र जो होवे उसकी ग़ैर के रुख़ को
मिले कैसे वह हमें इख़लास जताने से
जब न हुआ इस दर्द का ख़ुदा पे असर
क्या मिलेगा उसको चाक जिगर दिखाने से
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४