शोख़िए-क़ातिल की अदा में झुंझलाहट है
बदन में हिज्र की कैसी तिलमिलाहट है
सब्ज़ पत्तों पे ओस के निशान रह गये
गुलों के ख़ाली सीने में कैसी सरसराहट है
क़ासिद है दरवाज़े पे उनका ख़त लाया
रूठी आँखों में भीनी-भीनी मुस्कुराहट है
गलियारे से मुँहज़ोर हवा नहीं गुज़री
सूखे पत्तों के पाँव में किसकी आहट है
नज़र है उसे जिस्म की आख़िरी नब्ज़ भी
जिसकी नज़रों में प्यार की झुकावट है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४