ऐसा नहीं मेरे गुलशन में कोई फूल नहीं
है तो मगर उसमें कोई ख़ुशबू नहीं
उसकी बातें ग़ज़ल जैसी हैं उदास मगर
उनमें निख्खा तड़प है उर्दू नहीं
ज़हन में हैं उलझनों के पहाड़ काटे कोई
शिक़वा है जिससे वो ख़ुदा है अदू नहीं
तमन्ना है उससे कभी अपना हाल बयाँ हो
दिल है मेरा चाक उसपे रफ़ू नहीं
प्यार में मेरे अंदाज़ कुछ और ही हैं
दिल में यार की तस्वीर है लहू नहीं
कोई क्या समझाये दीवाने दिल को ‘नज़र’
दिल है मुँहज़ोर उसपे काबू नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३