तेरे दिल के दफ़्तर में मेरी अरज़ी दर्ज़ है
तुम सुलझाओ मेरा मसला तुम्हारा फ़र्ज़ है
शरीक़ कर लो अपनी मशरूफ़िअत में मुझे
मेरे सीने में जो उठा है तुम्हारा दर्द है
तेरे ख़ातिर में जगह ख़ाली है आँखों से बयाँ हैं
रख लो उसमें मुझे ज़माना बड़ा ख़ुदगर्ज़ है
तवक़्क़ो है तुमपे दीदए-रोज़े-अव्वल से
तेरे दीवाने का तुझे दिले-मस्ताना अर्ज़ है
शख़्सियत क्या है उदू की जो सामने ठहरे
मेरा कहर शमशीर और वार मेरा मर्ग़ है
वज़ा मेरे गुलशन में शुआओं के क़रिश्में हैं
‘नज़र’ न पाये तुम्हें सब ख़िज़ानो-ज़र्द है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३