सिवा इससे जो भी हो, करेंगे
महब्बत तुझ बिन किसी से न करेंगे
क़ज़ा ने भी हमसे ताक़त आज़माई की
तुझ बिन हम जहाँ से न चलेंगे
ख़ूब-रू कितने ही हुस्न दिखाते हैं
हम उनसे मुँह लगाई न करेंगे
बियाबाँ में ढकेला मुझको ग़मों ने
तू कहे गर यह सफ़र हम करेंगे
अरमान तेरा न जायेगा ख़ातिर से
हम दश्त को भी जाए-चश्म करेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३