मक़सद है मेरे पास क्या जीने को
कहाँ से लाऊँ तुम-सा बहाना जीने को
साँस चलती है ज़ख़्म करते हुए
कौन कब तक करेगा दवा जीने को
तस्वीरे-सुखन आँखों में अयाँ है
सुखनवर को देते हो दुआ जीने को
रखे हैं सभी दाग़ जो तुमने दिये
अब जलता है वह दिया जीने को
नरमी बरतो ज़रा दिल से ‘नज़र’
कर न बैठे वह कोई ख़ता जीने को
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३