जो होता है भले के लिए होता है
ख़ुद को समझने के लिए होता है
इंसान की आदत है बदल जाना
कि वह बदलने के लिए होता है
वक़्त रुका है कब किसके लिए
आदतन चलने के लिए होता है
सच-झूठ का दुनिया में है हिसाब
मुँह पर कहने के लिए होता है
माहिर एक तू ही नहीं ज़ीस्त का
बहाना यह जीने के लिए होता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘वफ़ा’
लेखन वर्ष: २००३