न रखो वह तस्वीरें हरी जिनसे दिल दुखता हो
कर दो वह ज़मीनें बंजर जिनमें घाव उगता हो
क्यों सीने में साँस लेवे दर्द किसी बेदर्द का
मिटा दो वह शोलए-दाग़ भी जिससे दिल जलता हो
लुत्फ़ लो उस बात में जिसमें न हो माज़ी की सदा
नोंच दो वह हर ख़ार जो उम्मीदों पर चुभता हो
रोशनी चाहिए हर क़दम पे हमें भी तुम्हें भी
जलाओ वह दिए किसलिए जिनसे धुँआ उठता हो
आँच बटोरो ग़म पी जाओ ज़ीस्त को जीना सीखो ‘वफ़ा’
क्यों जोड़ो उस ख़ाब के टुकड़े जो ख़ुद को छलता हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘वफ़ा’
लेखन वर्ष: २००३