दीप जलाओ रात को पूनम कर दो
मेहबूब की यादों से आँखें नम कर दो
तमन्ना को हसरते-विसाल है
ज़हर दे दो मुझे यह करम कर दो
शाम की ख़ाक गिरने लगी है आसमाँ से
मेरे ख़ातिर में सहरे-ग़म कर दो
बर्फ़ की गरमी से आजिज़ आ चुका मैं
बे-तस्कीनियों की धूप गरम कर दो
चाँद के छुपने का बाइस मैं कैसे कहूँ
‘वफ़ा’ आज बरसात का मौसम कर दो
शायिर: विनय प्रजापति ‘वफ़ा’
लेखन वर्ष: २००३