वह चाँद से तेरी बातें करना याद आया
तेरे लिए सरे-बाम खड़ा होना याद आया
गो आज फिर भीग गये पलकों के किनारे
वह तुझे देखकर मुस्कुराना याद आया
तबीयत के सभी रंग नासाज़ी ने ले लिये
वह दिन-रात ख़ुद से लड़ना याद आया
देखिए खेल लुक-छुप का कब तक चले
वह तेरा मुझे देखके न देखना याद आया
‘नज़र’ से पूछो वह नज़रों का मेल-जोल
न मिलकर भी सब कुछ कहना याद आया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३