तुम बिन यह बहार यह ख़िज़ाँ हो न हो
तुम बिन यह जिस्म यह जाँ हो न हो
तुम बिन यह फ़ायदा यह ज़ियाँ हो न हो
तुम बिन यह ख़ुशी यह फ़ुग़ाँ हो न हो
तनहाई से अब न लुत्फ़ है न दर्द ही
लहू से तर इस तरह गिरियाँ हो न हो
रोशनी के घर अंधेरों ने जला दिये हैं
तुम उम्दा हो ‘वफ़ा’ कोई उम्दा हो न हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘वफ़ा’
लेखन वर्ष: २००३