मेरी ज़िन्दगी में धूप थी मगर
तेरी यादों की नर्म धूप
ओस में भीगी ऊदी धूप
कोहरे में छनी हुई धूप
चाँदनी से भी कोमल… निर्मल…
आज भी महसूस करता हूँ रोज़ शाम
जब सूरज मद्धम पड़ जाता है
और चाँद खिलने लगता है,
चाँद में तुम्हें और धूप में तुम्हारा एहसास…
लम्स महज़ जिस्म की
नज़दीकियों से महसूस नहीं होता
किसी के इश्क़ में
वो उसके ख़्याल से भी मिलता है,
महज़ ख़्याल से…
किस तरह समझाऊँ मैं तुम्हें
हालत अपने इस दिल की
जो तुम्हें सिर्फ़ तुम्हें चाहता है
बेक़रार है उदास है बिन तुम्हारे…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४