आज महसूस किया मैंने
गर तुम्हें किसी और के साथ देखूँ
तो मेरे दिल पे क्या गुज़रेगी
कैसा महसूस करूँगा बाद उसके…
काँच-से कच्चे खा़ब किस तरह चूर होंगे,
किस तरह बिखरेंगे, छिटकेंगे मेरे ज़ख़्मों पर
मानिन्द काँच के टुकड़ों के…
अश्कों का खा़रापन किस तरह ज़ख़्मों से
मवाद बनके बहेगा
क़तरा-क़तरा गलायेगा मेरे दिल को
किसी लाश की तरह,
जिसे दर्दों की तह में
वक़्त की मिट्टी तले दबा दिया गया हो
आज महसूस किया मैंने एक डर
तेरी फ़ुरक़त का डर
तेरे दूर होने का डर
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
One reply on “क़तरा-क़तरा गलायेगा मेरे दिल को”
It’s very good