ज़िन्दगी माने हो तुम
साँसें तुम्हारा एहसास हैं
यादें बाइस हैं ज़ीस्त को
तेरी तमन्ना है खु़शी
ग़म है तेरी जुदाई
ज़ख़्मे-दिल ही मरहम
ज़ख़्मे-दिल ही दवा
और चारागर हो तुम…
आप ही हँसना है
आप ही रोना है
दिन-रात ख़्यालों में
तुमसे बातें करना
सब जीने का मतलब है
खा़ली सीने में दिल कहाँ है
वह तो तुम्हारे पास है
जो सीने में धड़कता है
महज़ तुम्हारा एहसास है
जब भी बेले की कली खुलती है
और गुलाब महकता है
यूँ एहसास होता है उसे छूकर
जैसे तुमको छू लिया है
तुम मुझसे नाआश्ना हो
मगर मैं तुमसे दूर नहीं
यह दूरियाँ यह फ़ासले
सब कम हो जायेंगे
बस तुम्हारे घर का पता मिले
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४