लम्हा-लम्हा लम्हा ठहरा हुआ है
लम्हा-लम्हा लम्हा बह रहा है
ज़िन्दगी का सफ़र घड़ी-सा चल रहा है,
इन आँखों में ख़ाब-सा जल रहा है…
राहें तेरी बदल-सी गयी हैं
यादें तेरी सिमट-सी गयी हैं
तन में एक साँस है
जिसको तेरी तलाश है
ज़िन्दगी हर घड़ी यूँ लगने लगी
जैसे कोई फाँस है
फूलों के बाग़ों में
पतझड़ के मौसम हैं छाये हुए
जाने कब से यह-
बादल घनेरे हैं बिथराये हुए
लम्हा-लम्हा लम्हा ठहरा हुआ है
लम्हा-लम्हा लम्हा बह रहा है
ज़िन्दगी का सफ़र घड़ी-सा चल रहा है,
इन आँखों में ख़ाब-सा जल रहा है…
अब क्या है यहाँ पर मेरा
ख़त्म-सा हो गया है सवेरा
हाथों की लकीरों से
तेरे नाम क्यों मिटने लगे
कहानी नहीं ये ज़िन्दगी है,
जिसमें तुम अपने लगे
फिर न कहना कभी
जो तुमने कह दिया है
वक़्त है सनम ये,
जिसने हमें जुदा किया है
ये ही मिलायेगा
एक दिन हम दोनों को
ये ही मिटायेगा
जीवन के अँधेरों को…
लम्हा-लम्हा लम्हा ठहरा हुआ है
लम्हा-लम्हा लम्हा बह रहा है
ज़िन्दगी का सफ़र घड़ी-सा चल रहा है,
इन आँखों में ख़ाब-सा जल रहा है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२