मेरी नज़रों से तुम खो गये
हाय दिल पे लाखों सितम हो गये
अब तुम कहाँ मैं तुम्हें ढूँढ़ता फिरूँ
तेरे इश्क़ में मैं जियूँ या मरूँ
हाय क्या करूँ, हाय क्या करूँ…
पहली बार जब हम तुम मिले थे
इन पर्वतों पे बादल झुके थे
फूल-पत्तों को हवाएँ चूमती थीं
वो इश्क़ के सिलसिले थे…
मेरी नज़रों से तुम खो गये
हाय दिल पे लाखों सितम हो गये
अब तुम कहाँ मैं तुम्हें ढूँढ़ता फिरूँ
तेरे इश्क़ में मैं जियूँ या मरूँ
हाय क्या करूँ, हाय क्या करूँ…
मुहब्बत नस-नस में दौड़ती है
तेरी मेरी कहानियों को जोड़ती है
कैसे तुम्हें भूल जाऊँ
दर्द जिगर का कैसे मिटाऊँ…
मेरी नज़रों से तुम खो गये
हाय दिल पे लाखों सितम हो गये
अब तुम कहाँ मैं तुम्हें ढूँढ़ता फिरूँ
तेरे इश्क़ में मैं जियूँ या मरूँ
हाय क्या करूँ, हाय क्या करूँ…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२