कोई न कोई किसी न किसी के लिए बना है
कहाँ कब वो कैसे मिलेगा ये किसे पता है…
ये पवन क्यों बहकने लगी है
ये धड़कन क्यों मचलने लगी है
ये कैसा नशा छाने लगा है
इक अजब-सा मज़ा आने लगा है
दिल को ऐसा क्यों लगने लगा है
कि वह मुझे मिल गया है
जो मुझे मुझसे चुराने लगा है
जो मेरे लिए बना है…
कोई न कोई किसी न किसी के लिए बना है
कहाँ कब वो कैसे मिलेगा ये किसे पता है…
मेरे दिल को चुराकर तुम ले गये
मुझको दीवाना तुम कर गये
पहली पहली नज़र में ही सनम
इस दिल में तुम बस गये…
दिल से दिल कुछ कहने लगा है
मोहब्बत समझने लगा है
मैं कहूँगा पर तुम मानोगी नहीं
तुम हो मेरी मुझे पता है…
कोई न कोई किसी न किसी के लिए बना है
कहाँ कब वो कैसे मिलेगा ये किसे पता है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२