आ जाओ सनम
न जी सकेंगे बिछड़के हम
आ जाओ सनम
तुम आ जाओ सनम
न जी सकेंगे बिछड़के हम
तुम थे जब तलक
ज़िन्दगी में रोशनी ही रोशनी थी
चाँद को ताकते थे रातों में
और साथ में चाँद के चाँदनी थी
पेड़ों पर फूलों का मौसम था
बारिश में भीगा गीला सावन था
ख़ुशहाली थी हरियाली थी
दिल से दूर ग़म का बादल था
आ जाओ सनम
न जी सकेंगे बिछड़के हम
आ जाओ सनम
तुम आ जाओ सनम
न जी सकेंगे बिछड़के हम
तुम जो मिल जाओ
ज़िन्दगी की ख़ुशी मिल जायेगी
चाँद सितारों की रात-सी
ख़ुशियों की झड़ी लग जायेगी
जनम से प्यासे सागर को
उसकी नदिया मिल जायेगी
और मेरी कल्पना जो
मुझे वह सोफ़िया मिल जायेगी
आ जाओ सनम
न जी सकेंगे बिछड़के हम
आ जाओ सनम
तुम आ जाओ सनम
न जी सकेंगे बिछड़के हम
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२