तेरी यादों के, तेरे ख़ाबों के, साये तले
हम कितनी दूर निकल आये, कहाँ चले
तेरी यादों की धुँधली शाम, है नीली-नीली
सागर तट की रेत भी है गीली-गीली
क्या ख़बर कब थकते क़दमों की शाम ढले
तेरी यादों के, तेरे ख़ाबों के, साये तले
हम कितनी दूर निकल आये, कहाँ चले
इक डोर बाँधी थी तुमने वह टूटी नहीं है
दिल को लगी थी जो लगन वह छूटी नहीं है
क्या ख़बर क्यों बुझी राख में चिंगारी जले
तेरी यादों के, तेरे ख़ाबों के, साये तले
हम कितनी दूर निकल आये, कहाँ चले
जब कोई आहट आती है तेरी याद जगाती है
तन्हा करके हमें पल-पल तोड़ जाती है
हम अकेले थे, हम अकेले रह गये, तुम गये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
2 replies on “तेरी यादों के, तेरे ख़ाबों के, साये तले”
teri yaadon ki dhundhali sham,nili-nili,bahut sundar line hai. beautiful.
बढ़िया है…