तेरी यादों के साये तले
जाने हम-
कितनी दूर तक चले
क्या ख़बर कब…
थकते क़दमों की शाम ढले
जाने कब पतझड़ को
महकता सावन मिले
तेरी यादों की शाम
है नीली-नीली
सागर तट की रेत
है गीली-गीली
तेरी यादों के साये तले
जाने हम-
कितनी दूर तक चले
क्या ख़बर किसलिए…
बुझी राख में चिन्गारी जले
जाने क्यों तेरे बिना…
चलते हैं यहाँ सिलसिले
इक डोर बाँधी थी हमने
वह टूटी नहीं है,
दिल को लगी थी जो लगन,
वह छूटी नहीं है…
तेरी यादों के साये तले
जाने हम-
कितनी दूर तक चले
क्या ख़बर कैसे क्या हुआ
जो तुम रुसवा हो गये…
हम बिल्कुल अकेले,
तन्हा रह गये तुम जो गये
जब कोई आहट आती है
तेरी ही याद जगाती है
तन्हा कर-करके हमें
पल-पल तोड़ जाती है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९