दिल से दिल मिले दिल से दिल
ख़ाबों के गुल खिले ख़ाबों के गुल
क़दमों के नीचे से सरकी ज़मीं
मुहब्बत की ज़मीं पर रखे क़दम
बढ़ते रहेंगे आग के तूफ़ाँ में भी
जब तक है अपने जिस्मों में दम
खोती हैं निगाहें ख़ाबों की बाँहों में
धड़कता है दिल तेरी यादों में
दिल में नग़मों की बरातें आयी हैं
साथ मुहब्बत का तूफ़ाँ लायी हैं
दिल से दिल मिले दिल से दिल
ख़ाबों के गुल खिले ख़ाबों के गुल
हम ख़ाहिश में तपते हैं जलते हैं
कहीं दो जिस्मो-जाँ मिलते हैं
दिलों की दूरी मिटती है बनती है
तेरी यादों की गहराई सिमटती है
दिल से दिल मिले दिल से दिल
ख़ाबों के गुल खिले ख़ाबों के गुल
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९