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मेरा गीत

मेरे दिल की पगडंडियों से

मेरे दिल की पगडंडियों से
रोज़ाना कितने गुज़रते हैं
कितने क़दमों के निशाँ बनते हैं
कितने मिटते हैं…

तू जिस दिन से गुज़री है
किसी से कहते नहीं बनता
हमारे सीने में
इक ऐसी आँधी उबरी है

सबसे यूँ ही मिल लेता हूँ
लेकिन तुम वही हो
जिसको दिल से चाहता हूँ

कोशिश की थी मैंने पहले
न याद आये मुझको तू
लेकिन तुझको चाहता हूँ

मेरे दिल की पगडंडियों से
रोज़ाना कितने गुज़रते हैं
कितने क़दमों के निशाँ बनते हैं
कितने मिटते हैं…

तेरा चेहरा नज़र में हर वक़्त है
जिसपे ख़ुशनुमा गुल खिलें
वह कौन-सा दरख़्त है

यह दिल की सदा है
बहारों का नज़ारा सजा है
आ दिलो-जाँ थोड़ा क़रीब कभी

मेरे दिल की पगडंडियों से
रोज़ाना कितने गुज़रते हैं
कितने क़दमों के निशाँ बनते हैं
कितने मिटते हैं…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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