दिल, मिलें कैसे कोई तो रास्ता दे
क़ुछ यक़ीन ख़ुद पर रहे
ऐसा ज़माने को वास्ता दे
मैंने सपनों में सजायी जो सूरत है
आज मिली वह ख़ूबसूरत है
दिल, जाने क्या हो गया है
सोचो तो ज़रा क्या खो गया है
मेरी कहानी में यह क्या मोड़ आ गया
तुम आकर मिलो…
दिल, मिलें कैसे कोई तो रास्ता दे
क़ुछ यक़ीन ख़ुद पर रहे
ऐसा ज़माने को वास्ता दे
आँखें मिलाकर नींदे चुराकर ले गया जो
जिसकी शोख़ अदा पर
हम मर मिटे वह गया तो
फिर कैसे यह ख़्याल रह गया
हर साँस में कैसा यह सवाल रह गया
भूलें कैसे हुआ जो…
दिल, मिलें कैसे कोई तो रास्ता दे
क़ुछ यक़ीन ख़ुद पर रहे
ऐसा ज़माने को वास्ता दे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९