दो लफ़्ज़ों में बयाँ कर सकते थे
हम अपने दिल की बात
गुज़र गये वह सारे लम्हे
बिताये थे जो हमने साथ
पास तो बहुत थे वह
फिर भी न कर पाये दिल की बात
वह दिन थे कितने हसीं
जब गुज़र रही थी उजालों से रात
दो लफ़्ज़ों में बयाँ कर सकते थे
हम अपने दिल की बात
जाने वह कौन घड़ी थी
जब वह छोड़ गये साथ
निगाहों में थे सारे इशारे
इशारों में थी अपने दिल की बात
कहने को बहुत था
न कह पाये हम दिल के जज़्बात
दो लफ़्ज़ों में बयाँ कर सकते थे
हम अपने दिल की बात
मिले कहाँ हम कभी फिर
जो कर पाते दिल की बात
चले गये वापस हसीन मौसम
गिर गये पेड़ों से सारे पात
जाने कब वह आयेंगे वापस फिर
जाने कहाँ होगी उनसे मुलाक़ात
दो लफ़्ज़ों में बयाँ कर सकते थे
हम अपने दिल की बात…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९