ज़हराब में बुझाते हैं तीर क्यूँ
शिकार की अदा मैं भी जानता हूँ
कितना मन मुकद्दर था उसका
यह राज़े-निहाँ मैं भी जानता हूँ
‘नज़र’ को जो ताबीज़ दी है उसमें
कौन-सी आयत है मैं भी जानता हूँ
वह हार जाये मुझसे ऐसा कहाँ
उसके जिगर की मैं भी जानता हूँ
‘नज़र’ की बात न करिए हुज़ूर
वह जीत जायेगा मैं भी जानता हूँ
ज़हराब= poisoned water, मुकद्दर= मैला, sullen, राज़े-निहाँ= भेद, आयत= पवित्र पंक्तियाँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३