इस जानिब य उस जानिब
कौन ‘नज़र’ है कौन ‘ग़ालिब’
एक बला है दर्दे-निहाँ
कौन बुरा कौन भला साहिब
यह मंडी भी ख़ूब है जिसमें
दाम नहीं देता कोई वाजिब
दिन को जी भर सो लिये
हुए रात ख़ाबों से मुख़ातिब
ज़ख़्म सीने पर पोंछ लिये
थी उसे चुपचाप मुनासिब
दर्दे-निहाँ= छुपा हुआ दर्द, unsaid pain
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३