आज दिन सुलगा होगा
रात बरसने दो
दिन कोई बादल होगा
चाँद चमकने दो
आँखों में ख़ाब महके हैं
तुमने छिड़के होंगे ख़ूब-रू
आँखों से मय पिलाने को
तुम बैठे रहो रू-ब-रू
वक़्त की नब्ज़ थाम लो
पिघले न एक क़तरा भी
ख़िज़ाँ के ज़र्द पत्तों का
यह मौसम है उतरा अभी
आज दिन सुलगा होगा
रात बरसने दो
दिन कोई बादल होगा
चाँद चमकने दो
मीठे-मीठे दो यह पल
तुम ज़ुबाँ से चखती रहो
मेरी दिल की बातों को
तुम आँखों से सुनती रहो
तुमसे हैं सवेरों के उफ़क़
सुबह के साहिल पे मिलना
तुमसे है गुलों की बातें
इश्क़ की शाख़ों पे खिलना
आज दिन सुलगा होगा
रात बरसने दो
दिन कोई बादल होगा
चाँद चमकने दो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२