आज दिन यूँ गुज़रा है झूठी मुस्कुराहट में
कि अब हँसता हूँ तो लगता है
खु़द-फ़रेबी कर रहा हूँ मैं…
दर्द के सिक्के
दिल में खनकते ही रहते हैं
बजते हैं कभी तो
साँसें वज़नी हो जाती हैं
अश्क तो टपकते नहीं है मगर –
आँखें खुश्क हो जाती हैं…
बस यूँ ही लगता है हर पल
कि मौत मुझे अपने गले लगा ले
अब तो मौत को भी
तुझ पर तरस नहीं आता ‘विनय’!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३