आज फिर धुँधले बादलों के पार
देखा चाँद, सुनहरा चाँद…
आज फिर तेरी याद आयी,
आज फिर मेरा जिस्म महकने लगा
अजब क़ुरबत है आस्माँ के चाँद से
तमन्नाएँ फिर जाग उठीं,
उफ़ वह फ़ुरक़त है ज़मीं के चाँद से
आज फिर आँख भर आयी…
महकी-महकी आँखों से
देखा न गया चाँद, सुनहरा चाँद
कि ‘उसको’ देखे एक मुद्दत हुई…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३