ऐ चाँद कब तलक ये सितारे देखूँ
बंजर ज़मीन’ वीरान नज़ारे देखूँ
रोशनी जज़्ब हो गयी तन्हाई में
किस तरह ख़ाब तुम्हारे देखूँ
जिन्हें मुझसे लुत्फ़ था कल तक
उनके बदले-बदले इशारे देखूँ
हुआ वक़्त का सितम’ हुआ तो हुआ
अब सिवा मौत क्या प्यारे देखूँ
जिन्हें आदत थी मुदाम जीतने की
वो लोग आज किस तरह हारे देखूँ
बहुत जिये लोग अपने लिए माना
आख़िर उन्हें बेबसी के मारे देखूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४