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मेरी ग़ज़ल

ता-हदे-नज़र क्यों बियाबान नज़र आता है

ता-हदे-नज़र क्यों बियाबान नज़र आता है
चाँद को क्या शिकवा क्यों सरे-सहर आता है

क्यों बढ़े आते हैं तन्हाई के मेले मेरे दिल तक
रोज़े-मशहर ही आये वह’ अगर आता है

शाम के साये में मेरी ज़िन्दगी चराग़ के मानिन्द है
आये इस जान को चैन अगर बुझकर आता है

वफ़ाओ-उल्फ़त से जो मेरा ताअल्लुक़ था सो तुमसे था
कि आँख में दिल का टुकड़ा लहू बनकर आता है

याद न दिलाये कोई वो तुमसे लम्हा फ़िराक़ का’ आज
मेरी ज़ुबान पे आह के लफ़्ज़ों का ज़हर आता है

चाँद से कहा न आये उस तरह से जैसे वो आये था
मगर हर शाम उसी तरह छत पर आता है


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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