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मेरी ग़ज़ल

ऐलाने-मौत

तुमने इक बार तो कहकर देख लिया होता
मैं तुमसे दूर बहुत दूर चला गया होता

तुमने उसकी बात का एतबार कर लिया शायद
काश तुमने मेरी बात का एतबार किया होता

मैं बुरा बहुत बुरा सही मगर धोख़ेबाज़ नहीं हूँ
तुमने इक बार तो आज़माकर देख लिया होता

पास मेरे अपनी यह निशानी मत छोड़ के जा
काश तुमने मुझसे कोई सौदा किया होता

उम्र लम्बी नहीं होती किसी झूठे अफ़साने की
वह तुमको मुझसे माँगकर ले गया होता

उसने तुमको मुझसे छीन लिया है शायद
काश उसको मेरे जुनून के बारे में पता होता

बर्दाश्त नहीं मुझसे कि तुम उसके बन जाओ
तुमने इस बात को पहले ही समझ लिया होता

मैं तुमको पाने के लिए अच्छा और बुरा दोनों हूँ
काश उसने अपनी मौत को पहचान लिया होता

अब उसकी मौत बद से बद्तर हो जायेगी
अफ़सोस होगा उसे कि उसने ऐसा न किया होता

मैं उसको माफ़ भी कर देता शायद किसी बहाने
गर उसको मेरे बारे में कुछ भी न पता होता


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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