मैंने तेरे सौदे का कभी हिसाब न माँगा
कि रु-ए-चाँद को कभी बेहिजाब न माँगा
परेशाँ वो मुझको करता रहा बात-बात पर
मैंने किसी हुस्ने-जानाँ से शबाब न माँगा
गुल ने रात की शबनम पीकर आँखें लाल
मैंने शराबी आँखों से धुँधला ख़ाब न माँगा
उसने मुझको कई बार तोड़ा है जी भरकर
मैंने कभी उससे कोई जवाब न माँगा
रुख़ उसका कभी भीगा कभी महका भी
मैंने धड़कनों में दूसरा रबाब न माँगा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२