जितनी मै उन आँखों में थी
उतनी और कहाँ
जितना सुरूर उन आँखों में था
उतना और कहाँ
रोज़ शाम दरवाज़े पे बैठता हूँ
आज वह कहाँ
नक़्शए-क़दम उड़ गये धूल में
आज वह कहाँ
उसने शहर बदला है या घर
जानिब वह कहाँ
यह सीना ख़ाली हुआ जाये है
मौत वह कहाँ
अश्को-अक्स चश्म में नहीं है
न वह यहाँ, न हम यहाँ…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३