बहते हुए दिन ठहरी हुई रातें बिताऊँ कैसे
निहाँ जो दर्द सीने में मैं तुम्हें बताऊँ कैसे
आँख रोये न और न पलक झपके’ ये क्या है
जो ख़ुद ही न समझूँ उसे मैं समझाऊँ कैसे
इक पुरानी बात याद आयी ख़ामोश लम्हे की
तू न चाहे तो ज़ुबाँ पे तेरा नाम लाऊँ कैसे
बरसों हुए तेरा दीदार हुए’ वो क्या दिन थे
गर न बने तेरी तस्वीर फिर बनाऊँ कैसे
तेरे सितम सह-सहके मेरा दिल ज़ोफ़ हो चुका
अब तू ही बता मैं बुतों के नाज़ उठाऊँ कैसे
जो लिखे रोज़ मैंने और कभी तुम्हें भेजे नहीं
तेरे हुस्न की तारीफ़ में लिखे ख़त जलाऊँ कैसे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४