मैं दु:ख कब तक बाँटू सादा काग़ज़ से
हर्फ़ कब तक ढूँढू सादा काग़ज़ से
दिन खौलता रहा रात सर्द रही
मैं क्या-क्या बयाँ करूँ सादा काग़ज़ से
तुम कब लौटकर आओगे वापस
कह दो कब तक पूछूँ सादा काग़ज़ से
सीने का दर्द और दर्द का एहसास
कब तक बाँटा करूँ सादा काग़ज़ से
तुमसे जो कहनी है इस दिल की बात
कब तक कहता रहूँ सादा काग़ज़ से
बदन में नब्ज़ नहीं मुझको साँस मिले
इससे सिवा क्या कहूँ सादा काग़ज़ से
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४