बहुत दिन फिरे कूचे में तन्हा
मुझे किसी रोज़ तू भी दिखे तन्हा
गुनचे जो महके बादे-सबा में
परदानशीं चाँद भी दिखे तन्हा
शुआ-ए-सूरज से कोंपलें हरी हों
बाग़ गुलों के साथ भी दिखे तन्हा
सहाब बरसते हो आँसू जैसे
भीगा-भीगा सावन भी दिखे तन्हा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’