बड़ी मासूम है यह रात
धीरे-धीरे दबे पाँव आयी है
तेरी आँखों जैसी नीली है
गहरे नीले रंग की परछाईं है
आयी तो है मेरे सिरहाने
मगर नींद तो नहीं लायी है
ख़ाब कोई हाथ में नहीं
और क्या मेरे लिए लायी है
चाँद भी नहीं आसमाँ पे
रात और चाँद की जुदाई है
जाने वह कौन हमनशीं है
जिसने आँखों से नींद चुरायी है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२