बेवजह ही झूठी शाम मुस्कुराती है
पुरनम आँखों से मेरे साथ इठलाती है
चाँद भी तन्हा ठण्डी साँसें भरता है
चाँदनी अंग-अंग ज़ख़्म सहलाती है
हवा ख़ुश्क पर नम ज़ुबाँ बहती है
पत्तियों पर नर्म धूप गुनगुनाती है
गली में हर जगह माज़ी का ख़ाब खड़ा है
एक सदा मुझे आवाज़ देकर बुलाती है
धीरे-धीरे नीला आस्माँ गुलाबी हो रहा है
शफ़क़ बुझता हुआ सूरज सुलगाती है
ख़ाबों का भीड़ ख़्यालों का मज़मा लगा है
गुज़रा एक मौसम बारहा दोहराती है
तुम साँस लेती हो दिल मेरा धड़कता है
बिग़ैर ज़िन्दगी के नब्ज़ थम जाती है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३