भूले नहीं वो शाम के हसीन मंज़र
आँखें हैं नम आज भी ज़ख़्मे-जिगर
ख़ूब जल्वाए-हुस्न उस परी-रू का
रोशन करता है आज भी मेरा नगर
चराग़े-चाँद आसमाँ पे कौन देखता
नूरे-ख़ुदा जब ख़ुद ही आता नज़र
मुनासिब है कि हो दिल में इश्क़ कहीं
आज भी साँस लेते हैं ज़ख़्मे-जिगर
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२