पेड़ों से उतरे पत्तों का बसेरा शाख़ नहीं
तेरे ग़म के आँसुओं का डेरा आँख नहीं
कोई ख़ाहिश कोई ख़लिश साथ होगी
तभी मुझे तारीखों का इम्तियाज़ नहीं
मुतमइन-सा हो ख़ुद ही से झगड़ता हूँ
मेरे दिल में धड़कनों की आवाज़ नहीं
आज कल बेरोज़गार हूँ मैं इश्क़ से
मेरी आँखों में दूर तक कोई सराब नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२