भूली हुई यादें याद करता हूँ
बीती हुई शामें ढूँढ़ता हूँ
उन आँखों का नशा,
मचलते लबों के गुलाब ढूँढ़ता हूँ
भूली हुई यादें याद करता हूँ…
कभी चाँद-सा तुम्हें
कभी चाँद को तुम-सा कहता हूँ
कभी आँखों की मासूमियत
कभी बालियों की शरारत
महसूस करता हूँ…
बीती हुई शामें ढूँढ़ता हूँ,
भूली हुई यादें याद करता हूँ…
कभी जो मुस्कुराती थी
मुझे देखकर,
उस खिले हुए चाँद के
नूर को ढूँढ़ता हूँ…
वह बीते हुए पल ढूँढ़ता हूँ
तेरा चेहरा, तेरी आँखें
तेरे केश, तेरा हुस्न ढूँढ़ता हूँ…
भूली हुई यादें याद करता हूँ
बीती हुई शामें ढूँढ़ता हूँ…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२